Instagram
Showing posts with label dwarka. Show all posts
Showing posts with label dwarka. Show all posts

Where,who and why Krishna death

गांधारी ने श्रीकृष्ण को दिया था शाप, महाभारत युद्ध के बाद की बातें


महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था, तब दुर्योधन की माता गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप दिया था कि आपके कारण जिस प्रकार कौरव वंश का नाश हुआ है, ठीक उसी प्रकार आपके यदुवंश का भी नाश हो जाएगा। इस प्रसंग के बाद श्रीकृष्ण पुन: अपने नगर द्वारिका पहुंच गए, जहां कुछ समय बाद ही यदुवंश के सभी वीर मदिरापान के नशे में आपस में लड़-लड़कर मृत्यु को प्राप्त हो गए। इस प्रकार यदुवंश का नाश हो गया।
 
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है तब-तब भगवान मानव रूप में अवतार लेते हैं। त्रेता युग में जब रावण और अन्य राक्षसों का पाप बढ़ा तब श्रीराम अवतार हुआ और द्वापर युग में जब कंस, जरासंध, दुर्योधन आदि का पाप बढ़ा तब श्रीकृष्ण अवतार हुआ। द्वापर युग में जब सभी पापी नष्ट हो गए, तब श्रीकृष्ण अपनी लीलाओं को समेटकर पुन: अपने धाम लौट गए। शास्त्रों के अनुसार अगला अवतार कलियुग के अंत में कल्कि अवतार होगा।
 
वे एक पीपल के नीचे ध्यान की मुद्रा में बैठ। इस समय उन्होंने चतुर्भुजधारी रूप धारण कर रखा था। जब श्रीकृष्ण पीपल के नीचे ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे, तब उस क्षेत्र में एक जरा नाम का बहेलिया आया हुआ था। जरा एक शिकारी था और वह हिरण का शिकार करना चाहता था। जरा को दूर से हिरण के मुख के समान श्रीकृष्ण का तलवा दिखाई दिया। बहेलिए ने बिना कोई विचार किए वहीं से एक तीर छोड़ दिया जो कि श्रीकृष्ण के तलवे में जाकर लगा।जब वह पास गया तो उसने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में उसने तीर मार दिया है। इसके बाद उसे बहुत पश्चाताप हुआ और वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि जरा तू डर मत, तूने मेरे मन का काम किया है। अब तू मेरी आज्ञा से स्वर्गलोक प्राप्त करेगा।

जरा के जाने के बाद वहां श्रीकृष्ण का सारथी दारुक पहुंच गया। दारुक को देखकर श्रीकृष्ण ने कहा कि वह द्वारिका जाकर सभी को यह बताए कि पूरा यदुवंश नष्ट हो चुका है और बलराम के साथ कृष्ण भी स्वधाम लौट चुके हैं। अत: सभी लोग द्वारिका छोड़ दो, क्योंकि यह नगरी अब जल मग्न होने वाली है। मेरी माता, पिता और सभी प्रियजन इंद्रप्रस्थ को चले जाएं। यह संदेश लेकर दारुक वहां से चला गया।
इसके बाद उस क्षेत्र में सभी देवता और स्वर्ग की अप्सराएं, यक्ष, किन्नर, गंधर्व आदि आए और उन्होंने श्रीकृष्ण की आराधना की। आराधना के बाद श्रीकृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए और वे सशरीर ही अपने धाम को लौट गए।

श्रीमद भागवत के अनुसार जब श्रीकृष्ण और बलराम के स्वधाम गमन की सूचना इनके प्रियजनों तक पहुंची तो उन्होंने भी इस दुख से प्राण त्याग दिए। देवकी, रोहिणी, वसुदेव, बलरामजी की पत्नियां, श्रीकृष्ण की पटरानियां आदि सभी ने शरीर त्याग दिए। इसके बाद अर्जुन ने यदुवंश के निमित्त पिण्डदान और श्राद्ध आदि संस्कार किए।
इन संस्कारों के बाद यदुवंश के बचे हुए लोगों को लेकर अर्जुन इंद्रप्रस्थ लौट आए। इसके बाद श्रीकृष्ण के निवास स्थान को छोड़कर शेष द्वारिका समुद्र में डूब गई। श्रीकृष्ण के स्वधाम लौटने की सूचना पाकर सभी पाण्डवों ने भी हिमालय की ओर यात्रा प्रारंभ कर दी थी। इसी यात्रा में ही एक-एक करके पांडव भी शरीर का त्याग करते गए। अंत में युधिष्ठिर शरीर स्वर्ग पहुंचे थे।