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Where,who and why Krishna death
गांधारी ने श्रीकृष्ण को दिया था शाप, महाभारत युद्ध के बाद की बातें
महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था, तब दुर्योधन की माता गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप दिया था कि आपके कारण जिस प्रकार कौरव वंश का नाश हुआ है, ठीक उसी प्रकार आपके यदुवंश का भी नाश हो जाएगा। इस प्रसंग के बाद श्रीकृष्ण पुन: अपने नगर द्वारिका पहुंच गए, जहां कुछ समय बाद ही यदुवंश के सभी वीर मदिरापान के नशे में आपस में लड़-लड़कर मृत्यु को प्राप्त हो गए। इस प्रकार यदुवंश का नाश हो गया।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है तब-तब भगवान मानव रूप में अवतार लेते हैं। त्रेता युग में जब रावण और अन्य राक्षसों का पाप बढ़ा तब श्रीराम अवतार हुआ और द्वापर युग में जब कंस, जरासंध, दुर्योधन आदि का पाप बढ़ा तब श्रीकृष्ण अवतार हुआ। द्वापर युग में जब सभी पापी नष्ट हो गए, तब श्रीकृष्ण अपनी लीलाओं को समेटकर पुन: अपने धाम लौट गए। शास्त्रों के अनुसार अगला अवतार कलियुग के अंत में कल्कि अवतार होगा।
वे एक पीपल के नीचे ध्यान की मुद्रा में बैठ। इस समय उन्होंने चतुर्भुजधारी रूप धारण कर रखा था। जब श्रीकृष्ण पीपल के नीचे ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे, तब उस क्षेत्र में एक जरा नाम का बहेलिया आया हुआ था। जरा एक शिकारी था और वह हिरण का शिकार करना चाहता था। जरा को दूर से हिरण के मुख के समान श्रीकृष्ण का तलवा दिखाई दिया। बहेलिए ने बिना कोई विचार किए वहीं से एक तीर छोड़ दिया जो कि श्रीकृष्ण के तलवे में जाकर लगा।जब वह पास गया तो उसने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में उसने तीर मार दिया है। इसके बाद उसे बहुत पश्चाताप हुआ और वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि जरा तू डर मत, तूने मेरे मन का काम किया है। अब तू मेरी आज्ञा से स्वर्गलोक प्राप्त करेगा।
जरा के जाने के बाद वहां श्रीकृष्ण का सारथी दारुक पहुंच गया। दारुक को देखकर श्रीकृष्ण ने कहा कि वह द्वारिका जाकर सभी को यह बताए कि पूरा यदुवंश नष्ट हो चुका है और बलराम के साथ कृष्ण भी स्वधाम लौट चुके हैं। अत: सभी लोग द्वारिका छोड़ दो, क्योंकि यह नगरी अब जल मग्न होने वाली है। मेरी माता, पिता और सभी प्रियजन इंद्रप्रस्थ को चले जाएं। यह संदेश लेकर दारुक वहां से चला गया।
इसके बाद उस क्षेत्र में सभी देवता और स्वर्ग की अप्सराएं, यक्ष, किन्नर, गंधर्व आदि आए और उन्होंने श्रीकृष्ण की आराधना की। आराधना के बाद श्रीकृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए और वे सशरीर ही अपने धाम को लौट गए।
श्रीमद भागवत के अनुसार जब श्रीकृष्ण और बलराम के स्वधाम गमन की सूचना इनके प्रियजनों तक पहुंची तो उन्होंने भी इस दुख से प्राण त्याग दिए। देवकी, रोहिणी, वसुदेव, बलरामजी की पत्नियां, श्रीकृष्ण की पटरानियां आदि सभी ने शरीर त्याग दिए। इसके बाद अर्जुन ने यदुवंश के निमित्त पिण्डदान और श्राद्ध आदि संस्कार किए।
इन संस्कारों के बाद यदुवंश के बचे हुए लोगों को लेकर अर्जुन इंद्रप्रस्थ लौट आए। इसके बाद श्रीकृष्ण के निवास स्थान को छोड़कर शेष द्वारिका समुद्र में डूब गई। श्रीकृष्ण के स्वधाम लौटने की सूचना पाकर सभी पाण्डवों ने भी हिमालय की ओर यात्रा प्रारंभ कर दी थी। इसी यात्रा में ही एक-एक करके पांडव भी शरीर का त्याग करते गए। अंत में युधिष्ठिर शरीर स्वर्ग पहुंचे थे।
What is Common Men?
ये हे आम आदमी की अजब-गजब दास्तान
हम यहाँ कोई पोलिटिकल पार्टी आम आदमी की बात नहीं करेंगे हम यहाँ सच में आम आदमी क्या हे इसके बारे में बात करेंगे.
वो दिन भी रोज की तरह बगीचे में टहल रहा था। मन में अजब बेचैनी थी। तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। तभी मेरी नजर एक पकेआम पर पड़ी। आम को देखते ही आम आदमी का ख्याल आ गया। बचपन से ही आम आदमी के बारे में सुनता आ रहा हूं।
वो दिन भी रोज की तरह बगीचे में टहल रहा था। मन में अजब बेचैनी थी। तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। तभी मेरी नजर एक पकेआम पर पड़ी। आम को देखते ही आम आदमी का ख्याल आ गया। बचपन से ही आम आदमी के बारे में सुनता आ रहा हूं।
लगा कि भले बदलाव की तेज आंधी ही क्यूं न चले, पर आम आदमी के हाथ न कभी कुछ लगा है, न लग पाएगा। जब आम आदमी का जिक्र आता है तो मन में एक अजीब सहानुभूति आ जाती है। मैं सोच में डूबा सड़क पर आ गया। सोचा चलो आज सबसे पूछते हैं कि ये आम आदमी है कौन?
एक रिक्शेवाला मिला। सोचा इनके भी विचार जान लेते
हैं। पूछने पर पता चला कि वह पोस्ट ग्रेजुएट है और नौकरी नहीं मिलने की वजह
से जीवन-यापन के लिए यह काम कर रहा है। बातचीत के दौरान ही मैंने सवाल दाग
दिया, तुमआम आदमी के बारे में क्या सोचते हो? रिक्शेवाले ने मुझे टेढ़ी
नजरों से देखा और बोला- आम आदमी? वह तो मेरे रिक्शे की तरह होता है। सारी
जिंदगी चूं-चूं करते बोझ ढोता है। जब किसी के काम नहीं आता तो अंधेरी कोठी
में कबाड़ की तरह डाल दिया जाता है।
अभी आगे बढ़ा ही था कि सामने मोटरसाइकिल दनदनाते दरोगाजी दिख गए। दुआ-सलाम के बाद उनसे पूछ ही लिया आम आदमी के बाबत। आम आदमीका नाम आते ही साहब लार टपकाते बोले - आम आदमी यानी पका फल, जिसे चूसने के बाद गुठली की तरह फेंक दिया जाता है। भाई साहब हमें तो यही ट्रेनिंग दी जाती है कि जब चाहो आम आदमी का मैंगो शेक बना लो या अचार डालकर मर्तबान में सजा लो। वैसे हमें आम आदमी का मुरब्बा बहुत पसंद है।
रास्ते में मेरा स्कूल दिख गया। बचपन के इस स्कूल को देखते ही मैंने रिक्शा रुकवाया। स्कूल पहुंचा तो देखा पहले की तरह ही लकड़ी की कुर्सी पर बैठे गुरुजी सो रहे थे। स्कूल के फंड और मिड-डे मील पर चर्चा हुई। यहां भी वही सवाल। गुरुजी बोले, आम आदमी को मैं कोल्हू का बैल मानता हूं, जो नून-तेल-लकड़ी के लिए एक चक्कर में घूमता रहता है, लेकिन कहीं पहुंचता नहीं।
आगे जाके मेने हमारे डॉक्टर साहब से भी सवाल दाग दिया। कान से आला निकालते हुए साहब दार्शनिक हो गए। बोले - आम आदमीहमारे लिए टीबी, मलेरिया, बुखार है। हमारे लिए वही सबसे भला है, जिसका इलाज हमारे क्लिनिक में लंबा चला है।
शाम सुहानी थी। मोहल्ले के कुछ दोस्तों ने दावत का प्रोग्राम बना दिया। जगह तो हरदम की तरह मोहल्ले के नेताजी का बरामदा थी। खाने का आनंद लेते समय नेताजी से भी पूछ बैठा आम आदमी के बारे में। नेताजी के चेहरे पर चमक आ गई। बोले, आमआदमी हमारे बड़े काम का है। हम जो चुनावी योजना बनाते हे, उसमें आम आदमी विपक्ष को पछाड़ने के लिए नोट है, बस इतना जान लें कि आम आदमी हमारे लिए अदना-सा वोट है।
मैं हैरत में था। सोचने लगा क्या आम आदमी की यही परिभाषा है? मैंने तो सोचा था कि आम आदमी वह है, जो पैसों की गर्मी से फैलता और कमी से सिकुड़ता है। जो महंगाई की आहट से कांप जाता है। आम आदमी तो दुखों का ढेर है। अभावों का दलदल है। मुकम्मल बयान है, चेहरे पर दर्द का गहरा निशान है। तभी एक बात सोचकर मुस्करा दिया। किसी ने कहा था: फलों का राजा आमहोता है। धत्, भला राजा भी कहीं ‘आम’ हो सकता है!
Ability of Positive Thinking
सकारात्मक सोच की शक्ति
सकारात्मक सोच (Positive Thinking) के बिना जिंदगी अधूरी है| सकारात्मक सोच की शक्ति से घोर अन्धकार को भी आशा की किरणों (Lights of Hope) से रौशनी में बदला जा सकता है| हमारे विचारों पर हमारा स्वंय का नियंत्रण होता है इसलिए यह हमें ही तय करना होता है कि हमें सकारात्मक सोचना है या नकारात्मक|
कहा जाता है कि जैसे हमारे विचार होते है वैसा ही हमारा आचरण होता है. हमारे पास सकारात्मक विचार (Positive) एंव नकारात्मक विचार (Negative Thoughts) के दो तरह के बीज होते है, जो आगे चलकर हमारे दृष्टिकोण एंव व्यवहार रुपी पेड़ का निर्धारण करता है| हम जैसा सोचते है वैसा बन जाते है (What we think we become). यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिमाग रुपी जमीन में कौनसा बीज बौते है| थोड़ी सी चेतना एंव सावधानी से हम कांटेदार पेड़ को महकते फूलों के पेड़ में बदल सकते है|
जिस तरह काले रंग का चश्मा पहनने पर हमें सब कुछ काला और लाल रंग का चश्मा पहनने पर हमें सब कुछ लाल ही दिखाई देता है उसी प्रकार नेगेटिव सोच से हमें अपने चारों ओर निराशा, दुःख और असंतोष ही दिखाई देगा और पॉजिटिव सोच से हमें आशा, खुशियाँ एंव संतोष ही नजर आएगा|
यह हम पर निर्भर करता है कि सकारात्मक चश्मे से इस दुनिया को देखते है या नकारात्मक चश्मे से| अगर हमने पॉजिटिव चश्मा पहना है तो हमें हर व्यक्ति अच्छा लगेगा और हम प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई खूबी ढूँढ ही लेंगे लेकिन अगर हमने नकारात्मक चश्मा पहना है तो हम बुराइयाँ खोजने वाले कीड़े बन जाएंगे|
उदाहरण के लिए अगर किसी विद्यार्थी को परीक्षा से 20 दिन पहले अचानक ही यह विचार आता है कि वह इस बार परीक्षा (Exam) में उत्तीर्ण नहीं हो पाएगा तो उसके पास दो विकल्प है – या तो वह इस विचार को बार-बार दोहराए और धीरे-धीरे नकारात्मक पौधे को एक पेड़ बना दे या फिर उसी पल इस नेगेटिव विचार को पॉजिटिव विचार में बदल दे और सोचे कि कोई बात नहीं अभी भी परीक्षा में 20 दिन यानि 480 घंटे बाकि है और उसमें से वह 240 घंटे पूरे दृढ़ विश्वास के साथ मेहनत करेगा तो उसे उत्तीर्ण होने से कोई रोक नहीं सकता| अगर वह नेगेटिव विचार को सकारात्मक विचार में उसी पल बदल दे और अपने पॉजिटिव संकल्प को याद रखे तो निश्चित ही वह उत्तीर्ण होगा.
Always Speak Good and True
जुबान पर विराजमान रहती हैं मां सरस्वती
वाणी की देवी वीणावादिनी माँ सरस्वती है। कहते हैं कि श्रेष्ठ विचारों से सम्पन्न व्यक्ति की जुबान पर माँ सरस्वती विराजमान रहती है। बोलने से ही सत्य और असत्य होता है।
अच्छे वचन बोलने से अच्छा होता है और बुरे वचन बोलने से बुरा, ऐसा हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं। बोलना हमारे सामाजिक जीवन की निशानी है। हमारे मानव होने की सूचना है।
बोलने से ही हम जाने जाते हैं और बोलने से ही हम विख्यात या कुख्यात भी हो सकते हैं। एक झूठा वचन कई लोगों की जान ले सकता है और एक सच्चा वचन कई लोगों की जान बचा भी सकता है।
जैन, बौद्ध और योग दर्शन में सम्यक वाक के महत्व को समझाया गया है। सम्यक वाक अर्थात ना ज्यादा बोलना और ना कम। उतना ही बोलना जितने से जीवन चलता है। व्यर्थ बोलते रहने का कोई मतलब नहीं। भाषण या उपदेश देने से श्रेष्ठ है कि हम बोधपूर्ण जीए, ऐसा धर्म कहता है। वाक का सकारात्मक पक्ष यह है कि इस जग में वाक ही सब कुछ है यदि वाक न हो तो जगत के प्रत्येक कार्य को करना एक समस्या बन जाए। नकारात्मक पक्ष यह कि मनुष्य को वाक क्षमता मिली है तो वह उसका दुरुपयोग भी करता है कड़वे वचन कहना, श्राप देना, झूठ बोलना या ऐसी बातें कहना जिससे की भ्रमपूर्ण स्थिति का निर्माण होकर देश, समाज, परिवार, संस्थान और धर्म की प्रतिष्ठा गिरती हो। आज के युग में संयमपूर्ण कहे गए वचनों का अभाव हो चला है।
इस युग को बहुत आवश्यकता है इस बात की कि वह बोलते वक्त सोच-समझ लें कि इसके कितने दुष्परिणाम होंगे या इस का मनोवैज्ञानिक प्रवाभ क्या होगा।
Point of Good Leadership
किसी की परेशानी कम करो यही हे अच्छा नेतृत्व
’आगे चलते हुए साथ में चलना’ यह मुहावरा नेतृत्व करने वालों के लिए
बड़े काम का है, चाहे बात उल्टी लगती है। किष्किंधा कांड के उस प्रसंग से
यह मुहावरा समझें, जिसमें सीताजी की खोज में निकले वानर प्यास से परेशान हो
गए। हनुमानजी को लगा कि वानर प्यास से व्याकुल होकर प्राण छोड़ देंगे।
एक
ऊंचे स्थान पर चढ़कर दृष्टि डाली तो कुछ पक्षी एक गुफा में जाते दिखे और
वे समझ गए कि वहां पानी होगा। सारे वानरों को वहां ले गए। दल का नेतृत्व
अंगद कर रहे थे, लेकिन उन्होंने गुफा में जाने से इनकार कर दिया। सभी
हनुमानजी की ओर देखने लगे। जिस समय वानर रामजी से विदा लेकर निकले तब
अति-उत्साह में सभी आगे-आगे तथा हनुमानजी सबसे पीछे चल रहे थे, लेकिन जब
परेशानी आई तो उन्हें आगे कर दिया। किसी की परेशानी कम करना, परेशानी में फंसे लोगों का नेतृत्व करना हनुमानजी का स्वभाव है। ‘आगें कै हनुमंतहि
लीन्हा। पैठे बिबर बिलंबु न कीन्हा।।’ यहां एक शब्द आया है- ‘विलंबु न
कीन्हा।
हनुमानजी ने नेतृत्व संभालते हुए बिना देरी किए सभी
वानरों को गुफा के भीतर ले जाने की व्यवस्था की। जब आप किसी का नेतृत्व कर
रहे हों तो आगे चलते हुए भी साथ रहना होगा। यह गुण हमारे भीतर भी होना
चाहिए। चाहे हम परिवार का नेतृत्व कर रहे हों, समाज का या व्यवसाय में किसी
दल का। बेशक आगे आपको चलना है परंतु अपने साथ वालों को यह अहसास कराएं कि
हम उनके साथ ही चल रहे हैं। यह अहंकार हीनता के लक्षण हैं और यही हनुमानजी की विशेषता थी कि बिना विलंब किए आगे रहते हुए अहंकार न रखें। जिस दिन यह
गुण किसी के भीतर उतरता है, नेतृत्व के मतलब बदल जाते हैं।
Soch Badlo Desh Badlo सोच बदलो देश बदलो
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