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Always Speak Good and True

जुबान पर विराजमान रहती हैं मां सरस्वती 


 वाणी की देवी वीणावादिनी माँ सरस्वती है। कहते हैं कि श्रेष्ठ विचारों से सम्पन्न व्यक्ति की जुबान पर माँ सरस्वती विराजमान रहती है। बोलने से ही सत्य और असत्य होता है।

अच्छे वचन बोलने से अच्छा होता है और बुरे वचन बोलने से बुरा, ऐसा हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं। बोलना हमारे सामाजिक जीवन की निशानी है। हमारे मानव होने की सूचना है।




बोलने से ही हम जाने जाते हैं और बोलने से ही हम विख्यात या कुख्यात भी हो सकते हैं। एक झूठा वचन कई लोगों की जान ले सकता है और एक सच्चा वचन कई लोगों की जान बचा भी सकता है।

जैन, बौद्ध और योग दर्शन में सम्यक वाक के महत्व को समझाया गया है। सम्यक वाक अर्थात ना ज्यादा बोलना और ना कम। उतना ही बोलना जितने से जीवन चलता है। व्यर्थ बोलते रहने का कोई मतलब नहीं। भाषण या उपदेश देने से श्रेष्ठ है कि हम बोधपूर्ण जीए, ऐसा धर्म कहता है। वाक का सकारात्मक पक्ष यह है कि इस जग में वाक ही सब कुछ है यदि वाक न हो तो जगत के प्रत्येक कार्य को करना एक समस्या बन जाए। नकारात्मक पक्ष यह कि मनुष्य को वाक क्षमता मिली है तो वह उसका दुरुपयोग भी करता है कड़वे वचन कहना, श्राप देना, झूठ बोलना या ऐसी बातें कहना जिससे की भ्रमपूर्ण स्थिति का निर्माण होकर देश, समाज, परिवार, संस्थान और धर्म की प्रतिष्ठा गिरती हो। आज के युग में संयमपूर्ण कहे गए वचनों का अभाव हो चला है। 

इस युग को बहुत आवश्यकता है इस बात की कि वह बोलते वक्त सोच-समझ लें कि इसके कितने दुष्परिणाम होंगे या इस का मनोवैज्ञानिक प्रवाभ क्या होगा।

Point of Good Leadership

किसी की परेशानी कम करो यही हे अच्छा नेतृत्व 


’आगे चलते हुए साथ में चलना’ यह मुहावरा नेतृत्व करने वालों के लिए बड़े काम का है, चाहे बात उल्टी लगती है। किष्किंधा कांड के उस प्रसंग से यह मुहावरा समझें, जिसमें सीताजी की खोज में निकले वानर प्यास से परेशान हो गए। हनुमानजी को लगा कि वानर प्यास से व्याकुल होकर प्राण छोड़ देंगे।
एक ऊंचे स्थान पर चढ़कर दृष्टि डाली तो कुछ पक्षी एक गुफा में जाते दिखे और वे समझ गए कि वहां पानी होगा। सारे वानरों को वहां ले गए। दल का नेतृत्व अंगद कर रहे थे, लेकिन उन्होंने गुफा में जाने से इनकार कर दिया। सभी हनुमानजी की ओर देखने लगे। जिस समय वानर रामजी से विदा लेकर निकले तब अति-उत्साह में सभी आगे-आगे तथा हनुमानजी सबसे पीछे चल रहे थे, लेकिन जब परेशानी आई तो उन्हें आगे कर दिया। किसी की परेशानी कम करना, परेशानी में फंसे लोगों का नेतृत्व करना हनुमानजी का स्वभाव है। ‘आगें कै हनुमंतहि लीन्हा। पैठे बिबर बिलंबु न कीन्हा।।’ यहां एक शब्द आया है- ‘विलंबु न कीन्हा।
हनुमानजी ने नेतृत्व संभालते हुए बिना देरी किए सभी वानरों को गुफा के भीतर ले जाने की व्यवस्था की। जब आप किसी का नेतृत्व कर रहे हों तो आगे चलते हुए भी साथ रहना होगा। यह गुण हमारे भीतर भी होना चाहिए। चाहे हम परिवार का नेतृत्व कर रहे हों, समाज का या व्यवसाय में किसी दल का। बेशक आगे आपको चलना है परंतु अपने साथ वालों को यह अहसास कराएं कि हम उनके साथ ही चल रहे हैं। यह अहंकार हीनता के लक्षण हैं और यही हनुमानजी की विशेषता थी कि बिना विलंब किए आगे रहते हुए अहंकार न रखें। जिस दिन यह गुण किसी के भीतर उतरता है, नेतृत्व के मतलब बदल जाते हैं।

 Soch Badlo Desh Badlo सोच बदलो देश बदलो

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